किया था जिस पर भरोसा, वोह दगा दे चल दिया ...
दोसत समझा था जिसे, वोह हमें, दुश्मन बना कर चल दिया ।
अपना समझा था जिसे, वोह गैर कह कर चल दिया ।
खज़ाना जिसको दिया था, हमने ज़िन्दगी का तमाम, वोह,
खज़ाना समेट कर यु मुस्करा कर चल दिया
पीठ थप थापैयी थी हमने जिसकी कभी, वोह पीठ पर हमारी खंजर जमा कर चल दिया ॥
किया था जिस पर भरोसा, वोह दगा दे चल दिया...
ऐएब हजारों जिसके कबूल, और ज़ख़्म दे वोह भी कबूल,
अपने तमाम ज़ख्मो को वोह, नासूर बना कर चल दिया ।
जिसे समझते रहे तह ज़िन्दगी हम, वोह न समझ बन मुस्कुरा चल दिया,
बन्ने मैं जिसके न रख्खी कोई कसर ,
वोह देखो हमें ही को बना कर चल दिया ॥
किया था जिस पर भरोसा, वोह दगा दे चल दिया...
दिए जिसके नाम के जलाये थे जहाँ मैं, वोह दिया देखो, हमारा ही आशियाँ जला कर चल दिया ।
गुरुर था जो हमारा, वोह गुरुर हमारा, मिटटी मैं मिला कर चल दिया ।
साथ दिया था हमने जिसका मुसइब्त मैं, वोह मुसीबत मैं हमारी हाथ छोड़ा कर चल दिया ॥
किया था जिस पर भरोसा, वोह दगा दे चल दिया...
खुशियाँ मांगी थी जिसकी, वोह ग़म लगा कर चल दिया ।
दुनिया मैं बनाना है मुश्किल, और गिराना है आसान,
कोशिशें करने से मिलते है, ज़मीन और आसमान ।
खओवैशैं हमारी तिनके सी थी, और नहीं थी तमाम,
तिनका हमारी ज़िन्दगी का, वोह मिटा कर चल दिया ॥
किया था जिस पर भरोसा, वोह दगा दे चल दिया....
ज़िन्दगी खुशाल थी, साथियों संग बहल थी,
दोस्तों की थी दुनियां, दोस्तों पर निहाल थी ।
था भरोसा उन पर यु, की जैसे कोई चट्टान थी,
पर हुआ क्या, क्यूँ और यह कैसे हुआ ?
एक दिन बॉस यूँ ही, वोह मुह उठा कर चल दिया ॥
किया था जिस पर भरोसा, वोह दगा दे चल दिया...
पर अगर है खुदा, और उसी की दुनिया है यह, तोह वोह भी वापिस आएगा ।
प्यार से कहने को यह, नहीं मिला मुझे दुनिया मैं बेहतर कोई मुझे अब तक जहाँ मैं ,
माफ़ करना मुझे ए दोसत मेरे, मुझे नहीं पता मैं क्यूँ यु सब भुला कर चल दिया ॥
किया था जिस पर भरोसा, वोह दगा दे चल दिया...
ए खुदा तुझसे मैं मांगता हूँ बस इतनी सी दुआ, खुश रहे वोह सदा ।
आबाद रहे अपनी दुनिया मैं वोह, खुशियों भरा हो उसका जहाँ,
न मिले उसे अपना कोई, जोह हो जग से जुदा ।
और न ही कभी मझधार मैं कोई दे उसको दगा, कहना न पड़े उसे कभी की ....
किया था जिस पर भरोसा, वोह दगा दे चल दिया.....
किया था जिस पर भरोसा, वोह दगा दे चल दिया....